चाँद, छलनी और सौभाग्य: Karva Chauth का अर्थ, परंपरा और सही पूजन-विधान
Karva Chauth भारत के उत्तर और पश्चिमी हिस्सों में बड़ी भावनाओं के साथ मनाया जाने वाला एक पावन व्रत है। एक पारंपरिक ब्राह्मण और कर्मकांड-विद्या का अभ्यास करने वाले के तौर पर, मैं इस पर्व का धार्मिक आधार, सांस्कृतिक अर्थ, व्यावहारिक पूजन-विधि और वर्तमान जीवन-शैली में इसे सही ढंग से निभाने के उपाय सरल भाषा में साझा कर रहा/रही हूँ।
What is Karva Chauth and why is it celebrated?
Karva Chauth एक वैवाहिक-सौभाग्य का व्रत है, जिसमें मुख्यतः सुहागिन स्त्रियाँ सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जल (बिना पानी) उपवास करती हैं। इसका उद्देश्य पति के दीर्घायु, स्वास्थ्य और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करना है। आज के समय में कई दंपती इसे साथ में भी रखते हैं—पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के लिए व्रत और प्रार्थना करते हैं—जो परस्पर सम्मान और समानता का सुंदर संदेश देता है।
“करवा” एक छोटे मिट्टी के घड़े (करवा) को कहते हैं, जिसमें प्राचीन समय में अनाज या पानी रखा जाता था। “चौथ” का अर्थ है कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है (पौर्णिमांत पंचांग के अनुसार; अमांत प्रथा में इसे आश्विन मास माना जाता है)। यह वही तिथि है जिसे संकष्टी चतुर्थी के निकट माना जाता है—अर्थात् चंद्रोदय पर आधारित चतुर्थी-पूजन।
क्यों मनाया जाता है:
- पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और दीर्घकालीन साथ की मंगल-कामना।
- गृहस्थ जीवन में अनुशासन, संयम, और तन्मयता का अभ्यास।
- परिवार और समाज में सामुदायिकता की अनुभूति; स्त्रियाँ समूह में कथा वाचन और पूजन करती हैं।
- लोक-इतिहास में इसे फसल-कटाई और सैनिक परंपरा (युद्ध पर गए पतियों की कुशलता के लिए) से भी जोड़ा गया है। हालाँकि इसके ऐतिहासिक कारणों पर अलग-अलग मत हैं, पर मुख्य भाव पति की दीर्घायु और वैवाहिक-मंगल का है। Vikipeida/Wikipedia और अनेक लोकप्रिय स्रोत भी इसे वैवाहिक-सौभाग्य से जोड़ते हैं।
धार्मिक दृष्टि:
- चंद्रमा का संबंध मन से माना गया है—“चन्द्रमा मनसो जातः”—इसलिए चंद्र-दर्शन और अर्घ्य देकर मन को शांति और संतुलन देने का प्रतीक है।
- व्रत, उपवास और संयम भारतीय साधना-परंपरा का अंग हैं—ये इंद्रियों पर नियंत्रण, कृतज्ञता और आस्था का अभ्यास कराते हैं।
What is Karva Chauth Katha?
Karva Chauth की कथा अलग-अलग प्रांतों में भिन्न कथानकों के साथ सुनाई जाती है। मुख्य रूप से दो लोकप्रिय कथाएँ प्रचलित हैं, और Vikipeida/Wikipedia में भी “वीरावती” वाली कथा का उल्लेख मिलता है। संक्षेप में दोनों को समझें:
- वीरावती की कथा:
- एक समय की बात है—वीरावती नामक एक सती-साध्वी रानी थी। उसने करवा चौथ का कठोर निरजल व्रत रखा। दिन भर भूखी-प्यासी रहने पर शाम तक वह बहुत अशक्त हो गई।
- उसके भाई अपनी बहन का कष्ट न देख सके। उन्होंने पेड़ पर दीया रखकर या छल से कृत्रिम चंद्रमा दिखा दिया, ताकि वह व्रत तोड़ दे।
- रानी ने चंद्रमा समझकर व्रत तोड़ा। किंतु यह धर्म-विधान के विरुद्ध हुआ और उसके पति पर संकट आ गया (कुछ versions में पति की मृत्यु का उल्लेख मिलता है)।
- रानी को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने पुनः विधि-विधान से चौथ का व्रत किया और भगवान शंकर-पार्वती की कृपा तथा चंद्रदेव के अर्घ्य से पति को पुनर्जीवन/कुशलता प्राप्त हुई।
- शिक्षा: व्रत-विधि में छल या अधूरापन नहीं होना चाहिए। संयम, सत्यनिष्ठा और धैर्य से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
- करवा (पतिव्रता) की कथा:
- करवा नामक एक स्त्री के पति को नदी में स्नान करते समय मगर (घड़ियाल) ने पकड़ लिया। करवा ने अपनी पतिव्रता-शक्ति और धर्म-बल से यमराज तक को रोक दिया और पति की रक्षा की।
- यम ने करवा की सत्यनिष्ठा और धर्म परायणता से प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दिया।
- शिक्षा: पतिव्रता का व्रत, निष्ठा और सत्यभाव सदैव रक्षा करते हैं। स्त्री की आस्था और साहस अद्भुत शक्ति का स्रोत है।
इसके अतिरिक्त कई क्षेत्रों में देवी गौरी-शंकर (शिव-पार्वती), गणेशजी और चंद्रदेव की संयुक्त पूजा की परंपरा है। समूह में बैठकर कथा सुनना, “सखियों” के साथ पूजन-गीत गाना—यह सब परंपरा का हिस्सा है। कथा का भाव यही है कि व्रत सच्चे मन और सही विधि से किया जाए, तब वह मंगलीक-फल देता है।
Karwa Chauth Date 2025
2025 में Karwa Chauth की तिथि अधिकतर पंचांगों के अनुसार Thu, 9 Oct, 2025, 10:54 pm – Fri, 10 Oct, 2025, 7:38 pm। परम्परागत नियम यह है कि यह व्रत उस चतुर्थी तिथि को माना जाता है जो चंद्रोदय पर व्याप्त (Chandrodaya Vyapini) रहे। इसलिए:
- अपने शहर/देश के अनुसार चंद्र-दर्शन का समय और चतुर्थी तिथि की व्याप्ति स्थानीय पंचांग/एप पर अवश्य जाँच लें।
- भारत में अलग-अलग शहरों में चंद्रोदय का समय थोड़ा-सा भिन्न होता है; विदेश में तो अलग समय-क्षेत्र के कारण यह अंतर और अधिक हो सकता है।
- संध्या के समय—चंद्रोदय से ठीक पहले—पूजन करना श्रेयस्कर माना गया है। प्रायः लोग सूर्यास्त के बाद से लेकर चंद्र-दर्शन तक पूजा और कथा-वाचन संपन्न करते हैं।
टिप:
- यदि किसी स्थान-विशेष पर 10 अक्टूबर की संध्या में चतुर्थी चंद्र-दर्शन व्यापिनी न हो, तो पंडित/पंचांग की सलाह लेकर स्थितियाँ स्पष्ट कर लें। किंतु सामान्यतः 2025 के लिए 10 अक्टूबर ही व्यापक रूप से स्वीकृत है।
Karwa Chauth Puja Vidhi
पूजा-विधि सरल है पर कुछ अनुशासन और तैयारी से इसे सहज किया जा सकता है। कुल-परंपरा और क्षेत्रीय प्रथाओं के अनुसार कुछ जोड़-घटाव होते हैं; नीचे एक व्यावहारिक, सर्वमान्य क्रम दिया जा रहा है:
तैयारी (एक-दो दिन पहले)
- पूजा-सामग्री: मिट्टी/पीतल का करवा (घड़ा), ढक्कन, दीया-बत्ती, रुई, घी/तेल, चावल (अक्षत), रोली/कुमकुम, हल्दी, मैदा/सिंधूर से चौक पूजन हेतु, एक सुंदर थाली, फूल, मिठाई/फेनिया, मेवे, फल, लौंग-इलायची, कपूर, धूप-अगरबत्ती, जल से भरा लोटा/कलश, गंगाजल, चन्नी (छलनी), दुपट्टा/चुनरी, कंगन/सिंदूर, तस्वीर/मूर्ति (श्री गणेश, शिव-पार्वती, चंद्रदेव का प्रतीक), लाल या पीला वस्त्र, नैवेद्य, दक्षिणा।
- सोलह श्रृंगार की सामग्रियाँ (इच्छानुसार): बिंदिया, काजल, सिंदूर, कंघी, कंगन, बिछिया, पायल, मेहंदी, इत्र, मांग-टीका आदि।
- साफ-सफाई: पूजा-स्थान स्वच्छ रखें; यदि संभव हो तो मंदिर या घर के ईशान कोण (नॉर्थ-ईस्ट) में पूजन करें।
- मेहंदी: व्रत के एक दिन पहले या सुबह-सुबह लगाना अच्छा माना जाता है।
व्रत की शुरुआत (सुबह—सर्गी)
- सर्गी (Sargi): प्रातःकाल सूर्योदय से पहले सास द्वारा दी गई सर्गी लेना शुभ माना जाता है—इसमें फेनिया, फल, मेवे, मिठाई, पराठा/हल्का नाश्ता आदि होते हैं। यदि सास साथ न हों तो परिवार की वरिष्ठ महिला या अपनी ओर से भी सर्गी ली जा सकती है।
- सर्गी के बाद सामान्यतः जल भी नहीं लिया जाता (निर्जल व्रत)। हालाँकि स्वास्थ्य के कारण आवश्यकता हो तो जल या फलाहार वाला व्रत (सात्विक) रखें—धर्म में स्वस्थ्य सर्वोपरि है। गर्भवती/स्तनपान कराने वाली माताएँ चिकित्सक की सलाह से लचीला नियम अपनाएँ।
दिवस-भर का आचरण
- संयम, सरलता और सात्विकता: क्रोध, कटु वाणी, नकारात्मक सोच से बचें। संभव हो तो हल्का जप (जैसे “ॐ पार्वत्यै नमः”, “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ चन्द्राय नमः”) करते रहें।
- सेवा-भाव: बड़ों का आशीर्वाद लें, घर में सहयोग करें।
शाम का पूजन-क्रम
- संध्या स्नान: स्वच्छ वस्त्र (अधिकतर लाल/पीला/सुहागी रंग) पहनें, सोलह श्रृंगार करें। पति भी साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर साथ बैठ सकते हैं।
- पूजा-स्थल सजावट: चौक (रंगोली) बनाकर करवा, दीपक और देव-प्रतिमाएँ स्थापित करें।
- गणेश पूजन: “ॐ गणाधिपतये नमः” का ध्यान करके गणेशजी का पूजन करें।
- गौरी-शंकर पूजन: शिव-पार्वती की प्रतिमा/तस्वीर का रोली-अक्षत से पूजन करें, फूल अर्पित करें, नैवेद्य रखें, धूप-दीप दिखाएँ।
- करवा पूजन: मिट्टी/धातु का करवा जल और अखंडता का प्रतीक है—इसमें जल/अक्षत/थोड़ा गेहूँ/मिठाई/सिक्का डालकर ढक्कन रखें। उस पर रोली से स्वस्तिक बनाएं।
- संकल्प: दाहिने हाथ में अक्षत, फूल, जल लेकर मन में संकल्प बोलें—उदाहरण:
“मम पति-दीर्घायु-सौभाग्य-आरोग्य-संतति-सुख-समृद्ध्यर्थं करवा चौथ व्रत-पूजनमहं करिष्ये। ॐ नमः शिवाय।” - कथा-वाचन: समूह में या घर पर करवा चौथ की कथा सुनें/पढ़ें। सुनी-सुनाई कथा के बाद “करवा” को घुमाने/थाली घुमाने की प्रथा कई जगह है।
- आरती: “ॐ जय गौरी माता”, “ॐ जय शिव ओंकार” अथवा “ॐ जय लक्ष्मी माता” जैसी आरती करें।
- पति का तिलक: कई कुँटुम्बों में शाम को पति को तिलक/आरती कर प्रत्यक्ष आशीर्वाद लिया जाता है।
चंद्र-दर्शन और पारणा
- चंद्रोदय-समय पर थाली में जल/दूध-मिश्रित जल, रोली, अक्षत, मिठाई रखें। दीपक और छलनी भी साथ रखें।
- चंद्रमा का दर्शन छलनी से करें; कुछ परिवारों में पहले चंद्रमा, फिर उसी छलनी से पति का चेहरा देखना प्रचलित है—यह सौभाग्य-स्थिरता का प्रतीकात्मक भाव है।
- अर्घ्य दें: जल में थोड़ा दूध/कपूर/कुमकुम/अक्षत डालकर चंद्रदेव को अर्घ्य अर्पित करें और “ॐ चन्द्राय नमः” का जप करें।
- व्रत-भंग (पारणा): पति/वरिष्ठ द्वारा जल ग्रहण कराकर व्रत तोड़ें। इसके बाद सात्विक भोजन लें—बहुत भारी/तला-भुना तुरंत न लें; पेट को धीरे-धीरे भोजन के लिए तैयार करें।
सरल मंत्र (इच्छानुसार)
- “ॐ नमः शिवाय”
- “ॐ पार्वत्यै नमः”
- “ॐ चन्द्राय नमः”
- “ॐ गं गणपतये नमः”
ध्यान दें:
- यदि स्वास्थ्य कारणों से निर्जल व्रत कठिन हो, तो संकल्प में स्पष्ट करें—“फलाहार-व्रत”—और उसी अनुसार पालन करें। शास्त्रों में भाव और श्रद्धा प्रमुख हैं, देह-धर्म का मान रखना भी आवश्यक है।
Karwa Chauth Rituals
परंपराओं का सौंदर्य इन्हीं रीति-रिवाजों में है—ये परिवार और समाज को जोड़ते हैं। कुछ प्रमुख रिवाज:
- सर्गी: सास की ओर से बहू के लिए सवेरे-सवेरे दिया जाने वाला पारंपरिक नाश्ता। इसमें फेनिया, मेवे, फल, मिठाई, मठरी, पराठा इत्यादि होते हैं। सासु माँ को उपहार और आदर भी दिया जाता है।
- बयाना/बायना: कुछ क्षेत्रों में सास या बड़ी-बूढ़ी महिलाओं को बायना (वस्त्र, मिष्ठान, श्रृंगार-सामग्री, दक्षिणा) दिया जाता है—यह कृतज्ञता और आशीर्वाद का आदान-प्रदान है।
- सोलह श्रृंगार: सुहाग का प्रतीक माना जाता है—सिंदूर, बिंदी, चूड़ियाँ, मेहंदी, पायल, काजल, इत्र आदि। यह “मन-चंदा” भी बढ़ाता है।
- समूह-पूजन और कथा: महिलाएँ इकट्ठा होकर एक ही स्थान पर करवा पूजन, कथा श्रवण, आरती और गीत करती हैं—जैसे “करवा चौथ आया रे”, “गोरिए करवाचौथ”, आदि लोक-गीत।
- करवा-घुमाना: कथा के दौरान/बाद में करवा या पूजा-थाली को सामूहिक रूप से घुमाने की परंपरा।
- चंद्र-दर्शन और छलनी: छलनी से चंद्रमा और फिर पति का चेहरा देखना—विवाह-संबंध की मंगल-कामना का काव्यमय प्रतीक।
- व्रत-भंग: पति द्वारा जल पिलाने का रिवाज, साथ में मिठाई खिलाना—आपसी स्नेह और मान का भाव।
- दान-पुण्य: किसी ब्राह्मण/जरूरतमंद/बुजुर्ग महिला को करवा, वस्त्र, मिष्ठान, दक्षिणा देना—सत्कार्य का हिस्सा।
- आधुनिक रूप: आजकल कई दंपती “म्यूचुअल फास्ट” भी रखते हैं, जिससे समानता और साथ निभाने की भावना प्रकट होती है। विदेश में रहने वाले परिवार वीडियो-कॉल पर साथ कथा/पूजा भी करते हैं—भाव प्रमुख है।
सावधानी:
- अतिरंजित खर्च, दिखावे और अनुत्पादक तुलना से बचें। धर्म सादगी, श्रद्धा और करुणा में आनंदित होता है।
- पर्यावरण-हित: मिट्टी के दीए, प्राकृतिक मेहंदी, बायोडिग्रेडेबल सजावट अपनाएँ; प्लास्टिक कम करें।
आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पक्ष
- उपवास शरीर को थोड़ी देर विश्राम देता है, जिससे पाचन-तंत्र को राहत मिलती है (यदि चिकित्सकीय स्थिति अनुकूल हो)। मन संयत रहता है।
- चंद्र-दर्शन और संध्या-पूजन से मन को स्थिरता मिलती है; संध्या-वेला में दीप-प्रकाश और मंत्रोच्चार से ध्यान एकाग्र होता है।
- समूह-पूजन सामाजिक समर्थन देता है—यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हो सकता है।
उत्पत्ति और संस्कृति
- “करवा” (घड़ा) ग्रामीण जीवन, जल-संस्कृति और सामूहिक सहयोग का प्रतीक रहा है। पुरानी जमातों में गेहूँ/वस्त्र/अनाज से भरे करवे का आदान-प्रदान समृद्धि-साझेदारी का संकेत था।
- उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, राजस्थान, हिमाचल) में यह व्रत अधिक प्रचलित है; गुजरात/मध्यप्रदेश/बिहार आदि में भी अब इसका प्रसार हो चुका है। Vikipeida/Wikipedia जैसे लोकप्रिय स्रोत भी यही बताते हैं कि यह मुख्यतः उत्तरी भारत में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
कुल-परंपरा के छोटे-छोटे भेद
- कहीं शाम को “गौरी शृंगार” की विशेष पूजा करते हैं, कहीं “करवा को बहन बनाकर” गीत-गाया जाता है।
- कुछ घरों में “रोहिणी नक्षत्र” का संदर्भ भी लिया जाता है, पर मुख्य नियम चंद्रोदय-व्यापिनी चतुर्थी का ही माना जाता है।
- कुछ परिवारों में “धागा/सूत्र” में गाँठें लगाकर कथा-सूत्र बांधा जाता है—जो संकट-निवारण और संकल्प-स्मरण का प्रतीक है।
स्वास्थ्य और लचीलेपन की बात
- मधुमेह/हाइपो-टेंशन/गर्भावस्था/स्तनपान/किडनी या हृदय संबंधी स्थितियों में—डॉक्टर की सलाह सर्वोपरि। फलाहार/जल-पान/औषधि नियमितता बनाएँ।
- धर्म का सार “भाव” है; कट्टरता से शरीर को हानि न पहुँचाएँ। संकल्प में स्पष्टता रखें कि आप स्वास्थ्य-वश फलाहार-रूप व्रत कर रहे हैं—धर्म में यह स्वीकृत है।
मानवीय और वैवाहिक अर्थ
- करवा चौथ सिर्फ़ निर्जल-उपवास नहीं—यह एक प्रतीक है कि परिवार, रिश्ते और साथ निभाने का व्रत कितना पवित्र होता है।
- आज के संदर्भ में भी यह पर्व “गिविंग-एंड-ग्रोइंग टुगेदर” का संदेश देता है—दोनों की सहमति, आपसी सम्मान और साझेदारी ही विवाह की असली शक्ति है।
- यदि घर में नई पीढ़ी इस व्रत को अपनाना चाहे तो उन्हें विधि का अर्थ, छोटी-छोटी वजहें और इंसानी संवेदना—ये सब समझाएँ; तब वे इसे बोझ नहीं, आनंद और संपन्नता का उत्सव मानती हैं।
कुछ सामान्य भूलें और उनके समाधान
- निर्जल व्रत में अत्यधिक शारीरिक श्रम और धूप से बचें; उचित विश्राम करें।
- पूजा-सामग्री आख़िरी वक्त पर न जुटाएँ—एक दिन पहले सूची बनाकर सहेज लें।
- भूख के कारण चिड़चिड़ापन/तनाव—हल्का भजन, श्वास-प्रश्वास, धीमे संगीत, बातचीत से मन को शांत रखें।
- चंद्र-दर्शन के बाद बहुत भारी भोजन ना लें; हल्के, गरम, सुपाच्य पदार्थ से शुरुआत करें।
- चंद्रोदय समय—इंटरनेट/एप/स्थानीय पंचांग/पंडित से समय नोट करें; यदि बादल हों, तो भावपूर्वक अर्घ्य अर्पित करके प्रतीकात्मक दर्शन भी कई परिवारों में स्वीकार्य है।
What is not allowed in Karwa Chauth?
- सूर्योदय के बाद चाँद निकलने तक न खाएँ-पीएँ (निरजल व्रत), यदि स्वास्थ्य अनुमति दे.
- शराब, धूम्रपान, तंबाकू—नहीं.
- चंद्रोदय व अर्घ्य से पहले व्रत न तोड़ें.
- कथा और शाम की पूजा न छोड़ें.
- नॉन-वेज़, अंडा, प्याज़-लहसुन—कई घरों में वर्जित.
- क्रोध, कटु वाणी, झगड़ा, चुगली—नहीं.
- दिया असुरक्षित जगह न रखें; टूटी/गंदी पूजा-सामग्री न इस्तेमाल करें.
- गलत तारीख/चंद्रोदय समय न मानें—अपने शहर का समय देखें.
- बादल हों तो दिशा की ओर अर्घ्य देकर ही पारणा करें (परिवार-रिवाज़ अनुसार).
- दिखावा/फिजूलखर्च—नहीं; सादगी रखें.
- कई परिवारों में काला/सफेद पहनना, शाम को बाल/नाखून काटना, नमक/धन उधार देना—टाला जाता है (क्षेत्रानुसार).
- किसी पर परंपरा थोपें नहीं; सबकी रीति का सम्मान करें.
FAQs (संक्षेप)
- प्रश्न: Karva Chauth का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर: पति की दीर्घायु, आरोग्य और वैवाहिक सौभाग्य की मंगल-कामना। आजकल कई दंपती एक-दूसरे के लिए संयुक्त व्रत भी रखते हैं। - प्रश्न: क्या यह व्रत निर्जल ही रखना अनिवार्य है?
उत्तर: पारंपरिक रूप से हाँ, पर स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार/जल-पान वाला व्रत स्वीकार्य है। चिकित्सक की सलाह सर्वोपरि है। - प्रश्न: पूजा किस देवता की होती है?
उत्तर: आरंभ में गणेशजी, फिर गौरी-शंकर की पूजा और अंत में चंद्र-दर्शन और अर्घ्य। कई परिवार कुल-देवता/देवी की भी आराधना करते हैं। - प्रश्न: करवा चौथ की कथा कौन सी मानी जाती है?
उत्तर: “वीरावती” और “करवा एवं मगर”—दोनों प्रसिद्ध कथाएँ हैं। क्षेत्रानुसार भिन्न versions सुनाए जाते हैं। - प्रश्न: 2025 में करवा चौथ कब है?
उत्तर: अधिकतर पंचांग 9 October 2025 (गुरुवार) बताते हैं। अपने शहर के अनुसार चंद्रोदय-समय अवश्य जाँचें। - प्रश्न: अविवाहित लड़कियाँ रख सकती हैं?
उत्तर: कई जगह अविवाहित लड़कियाँ भी मनपसंद जीवनसाथी की कामना से व्रत रखती हैं। यह स्थानीय परंपरा पर निर्भर करता है। - प्रश्न: क्या पति भी व्रत रख सकता है?
उत्तर: जी हाँ—आज कई दंपती पारस्परिक सम्मान में संयुक्त व्रत रखते हैं। - प्रश्न: बादलों में चंद्र-दर्शन न हो तो?
उत्तर: भावपूर्वक अर्घ्य अर्पित करें; बाद में दर्शन हो तो पुनः नमस्कार करें। परंपराएँ परिवार-परंपरा पर निर्भर करती हैं। - प्रश्न: व्रत-भंग में क्या खाएँ?
उत्तर: हल्का, सत्विक, सुपाच्य भोजन—जैसे दलिया/खिचड़ी/हल्का फुलका—से शुरुआत करें; तुरंत तला-भुना न लें। - प्रश्न: क्या यह जानकारी मानक स्रोतों से मेल खाती है?
उत्तर: हाँ—यह विवरण प्रचलित पंचांग-विधान और व्यापक स्रोतों (जैसे Vikipeida/Wikipedia में उल्लिखित सामान्य जानकारी) से सामंजस्य रखता है। मुहूर्त/समय-क्षेत्र के लिए स्थानीय पंचांग श्रेष्ठ है।
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